घर में राधा कृष्ण के चित्र क्यों नहीं लगाना चाहिए ?
इस विषय को जानने से पहले हम जानते हैं घर में किसी भी प्रतीक का प्रभाव हमारे मस्तिष्क पर कैसे पड़ता है।
मुख्य तौर पर हमारे मस्तिष्क को दो हिस्सों में बांटा गया है चेतन मन और अवचेतन मन।
चेतन मन कि कार्य प्रणाली आधुनिक समय के साथ जो ओपचारिक भाषा और सामाजिक ज्ञान के आधार पर यह अपना व्यवहार करता है। और अवचेतन मन कि कार्य प्रणाली हैं प्रतीकों के आधार पर बनने वाली आकृति को पहचान कर आकृति से बनने वाले आवरण के अनुसार व्यवहार करता है। यह आवरण को प्रतिको की भाषा में ही समझता है और अपने विचारों को भी जरूरत पड़ने प्रतीकों की भाषा में ही समझाता है ।
जब आपकी भाषा सामने वाले व्यक्ति समझने नहीं आती है तो आप तुरंत उस विषय को आकृति बनाकर समझाने लगते हैं। जब आप ऐसे किसी क्षेत्र में है जहां आपकी भाषा को सामने वाला कोई नहीं है और आपको पानी पिना है तो आप हांथ से इशारा करके पानी मांगते हैं। यह स्थिति अपने आप बन जाती है इस अभ्यास आप पहले नहीं करते हैं। सामने वाले व्यक्ति को इशारों में समझाने तथा आकृतियों को समझने कि विशेषता केवल अवचेतन मन ही समझता है।
आपके घर में बनने वाले प्रतीक कि आकृति कि प्रकृति के अनुसार प्रभाव आपके अवचेतन मन पर पड़ता है।
आवरण के रूप रंग भी प्रभावित कर अवचेतन मन को प्रभावित कर हमारे स्वभाव का निर्माण करता है । हमारे घर में रखे प्रतीकों की आवर्ती के अनुसार हमारा अवचेतन मन हमारी आदतों का निर्धारण करता है। जैसे हमारे घर में किसी डरावने प्रतीकों की स्थापना घर में रहने वाले सदस्यों को डराती है वैसे ही किसी भी चित्र तथा प्रतीक कि मुल प्रकृति का मूल प्रभाव हमारे स्वभाव पर पड़ता है। क्योंकि कोई भी वस्तु का मूल प्रकृति के अनुसार ही स्वाभाव होता है और उसका वही प्रभाव दूसरों पर पड़ता है हमारे घर में जैसा चित्रा रखते हैं उसका पूरा प्रभाव हम पर वैसा ही पड़ता है जैसी प्रकृति होती है प्रतीक अनुसार ही स्वभाव का निर्माण होता है।
घर में रखे किसी भी प्रतीक या प्राकृतिक रूप तथा मनुष्य के द्वारा सजावट के लिए किया गया कृत्रिम श्रृंगार क रूप अनुसार बनने वाले प्रतीक के अनुसार हमारे स्वभाव को पुरी तरह प्रभावित करता हैं।
अधिक जानकारी के लिए पढ़ें । चेतन ओर अवचेतन मन कि कार्य प्रणाली के अनुसार।
घर में लगाए गए चित्र हमारे चेतन मन की उपज होते हैं । आवरण में साज और सजा केवल दिखावा मात्र है और इस भौतिक युग की साज सजा से हमारा चेतन मन प्रभावित होता है और वह बिना महत्व और कारण या उपयोग जाने अपने घर में सुंदरता को बढ़ावा देने विचार से उसे स्थापित कर देता। घर में रखी गयी कोई भी वस्तु अपनी आकृति एवं प्रकृति के अनुसार घर में रहने वाले सदस्यों प्रभावित करती है।
घर पर राठोर कृष्ण के चित्र वह हमें अपनी आवरण की आवर्ती के अनुसार प्रभावित करते हैं सर्वप्रथम तो देवताओं के इतने बड़े चित्र घर में लगाने ही नहीं चाहिए।
राधा और कृष्ण के बीच के संबंध को समझते हैं तो राधा कृष्ण जी से 50 – 55 वर्ष बड़ी थी।उनके बीच ऐसे कोई भी संबंध नहीं थे जैसे चित्र में दिखाई देते हैं।
राधा मैइया ने कृष्ण जी के वास्तविक रूप को जान लिया था। उनके रूप में परमात्मा को देख लिया था। वह केवल भक्ति रूप में पुजती थी जैसे कलयुग में मीरा जी ने भक्ति कि हैं। वैसे ही द्वापरयुग में राधा ने कृष्ण को पुजा हैं।
अगर कृष्ण के स्वरूप को पूर्ण रूप से देखते हैं तो वह रूक्मिणी के साथ पूर्ण होता है जो उनकी अर्धांगिनी हैं।
राधा और कृष्ण के चित्र की आवर्ती एक सखा एवं मित्र के रूप में प्रदर्शित की गई है। आज के परिवेश में मित्र और सखा के संबंधों में ऐसी पार्दर्शिता नहीं बची है । विवाह के बाद एसी स्थिति केवल चरित्र हिनता को दर्शाती है।
राधा और कृष्ण जी की यह भ्रांति हमारे सनातन के साथ खिलवाड़ करके कि गई है उस समय के चाटुकार कवियों ने सनातन विरोधी एजेंडा चलाकर गलत बखान कर राधा और कृष्ण के ऐसे संबंधों की चर्चा में वृद्धि की और गलत संदेश दिया।
घर में राधा और कृष्ण के मित्र छवि के प्रतीक होने पर उसका वैसा हि प्रभाव हमारे अवचेतन मन से हमारे स्वभाव पर आएगा। इससे घर के सदस्यों में चरित्र हिनता से संबंधित आदतों में वृद्धि होती है। घर पर राधा कृष्ण तथा ऐसी ही छवि की अवस्था वाले अन्य चित्र एवं प्रतीकों का प्रयोग नहीं करना चाहिए जिससे घर में रहने वाले सदस्यों के चरित्र पर बुरा असर पड़ता है।