घर में कुआं ,बोरवैल तथा भूमिगत पानी की टंकी किस दिशा क्षेत्र में बनाना चाहिए।
जल तत्व कि प्राप्ति के लिए यह क्रिया जल तत्व के क्षेत्र में तथा जल तत्व के सहायक तत्वों के दिशा क्षेत्र में करना चाहिए । सहायक तत्व के दिशा क्षेत्र में यह क्रिया शुभफलदाई होती है। इसके अलावा जल तत्व के विरोधी तत्वों के दिशा क्षेत्र में यह क्रिया नाकारात्मक प्रभावों में वृद्धि करता है।
जल तत्व के विरोधी तत्व अग्नि तत्व और पृथ्वी तत्व होते हैं। उन तत्वों के दिशा क्षेत्र में अगर जल प्राप्ति से संबंधित क्रिया की जाएं तो तत्वों का आपसी विरोध बढ़ जाता है। और परिणाम स्वरूप घर में जल तत्व के साथ अन्य तत्वों के विरोध के कारण होने वाले दोषों में वृद्धि होती है। पित्त और कफ दोषों में वृद्धि होती है । इन दोषों के अनुसार शारीरिक एवं मानसिक परेशानियां रहती है।
बोरवेल का प्रयोजन पानी की प्राप्ति के लिए भूखंड में छिद्र करके जल की प्राप्ति की जाती है और कृत्रिम रूप से उस दिशा क्षेत्र को जल दिशा बनाया जाता है।
भूखंड का पानी अपने आप में एक प्रभावशाली ऊर्जा का निर्माण करता है।
अगर यह उचित क्षेत्र में है तो उसके प्रभाव सकता सकारात्मक रूप में प्राप्त होते हैं और अगर बोरवेल विपरीत दिशा क्षेत्र में होता है तो उसके प्रभाव नकारात्मक हो जाते हैं।
भुमिगत पानी कि टंकी का प्रयोजन
प्राचीन काल में गांवों में सार्वजन के लिए बरसात के पानी को संग्रह करने के लिए कुएं, बावड़ी, कुंड, जोहड़ आदि बनाए जाते थे। जिनसे गांव के लोगों कि पानी कि आपुर्ति होती थी। जब संसाधनों में वृद्धि हुई तो यह सुविधा निजी भवनों में भी होने लगी, घरों में बड़े-बड़े कुंड बनाए जाते थे और बरसात का पानी इकट्ठा करके पूरी साल भर के लिए संग्रह किया जाता था।
आज के परिवेश में जल आपूर्ति के लिए भूमिगत टंकी बनाई जाती है ।
आजकल निर्माण के साथ साथ पानी के संग्रह के लिए टंकी को दो हिस्सों में बनाया जाता है एक हिस्से मे बारिश का पानी और दुसरे हिस्से में बोरवैल का पानी संग्रह किया जाता है। पीने के लिए बारिश का पानी ओर अन्य जरूरतों के लिए बोरवैल का पानी संग्रह किया जाता है।
बरसात के पानी को और भूमिगत बोरवेल के पानी को कभी भी मिलाना नहीं चाहिए इसमें जीवाणुओं की वृद्धि जल्दी होती है पानी कीड़े पड़ जाते है।
अगर आप धरती माता से जल लेते हैं और बदलने में पृथ्वी को कुछ नहीं देते हैं तो यह स्थिति प्रकृति वितरित क्रिया को उत्पन्न करतीं हैं । जब आप जमीन से पानी निकालते हैं तो यह प्रकृति कि व्यवस्था को प्रभावित करता है।इस प्रभाव से बचने के लिए आपको दो छिद्र करने चाहिए एक पानी निकालने के लिए और दूसरा छिद्र बारिश के पानी में को भुमि के अंदर वापसी भेजने के लिए।
प्राचीन काल में केवल गांव में होता था घरों में नहीं बनाया करते थे आज के परिवेश में प्रत्येक घर में कुएं का छोटा रूप बोरवेल के रूप में बनाया जाता है।
भौतिक जीवन में सुविधा प्रथम है उसे सुविधा के कारण होने वाले दोषों पर ध्यान नहीं है।
वास्तु शास्त्र के अनुसार 16 दिशाओं में के अनुसार बोरवेल के प्रभाव निश्चित है।
1 उत्तर दिशा क्षेत्र (North direction )
उत्तर दिशा में कुआं एवं बोरवैल बनाने से सकारात्मक प्रभाव मिलते हैं यह दिशा जल तत्व से संबंधित दिशा क्षेत्र है इसमें जल की आपूर्ति के भूमिगत पानी की टंकी अथवा बोरवेल बनवा सकते हैं।
2 उत्तर – उत्तर – पूर्व दिशा क्षेत्र (North – north – east direction )
यह दिशा क्षेत्र जल तत्व से संबंधित क्षेत्र होता है इस दिशा में जल के स्रोतों का निर्माण शुभ कार्य माना जाता है इस दिशा में बोरवेल तथा भूमिगत पानी की टंकी शुभ फलदाई होती है।
3 उत्तर – पूर्व दिशा क्षेत्र (North-East direction)
उत्तर पूर्व दिशा क्षेत्र में बोरवेल क्रिया निषेध बताई गई है क्योंकि यहां वास्तु पुरुष के मस्तिष्क से संबंधित दिशा क्षेत्र होने पर यहां पर की गई कोई भी क्रिया घर में रहने वाले सदस्यों के मस्तिष्क पर अपने प्रभाव छोड़ती है।
4 उत्तर – पूर्व – पूर्व दिशा क्षेत्र (North – East – East direction )
इस दिशा क्षेत्र में भी बनाया गया बोरवेल अच्छे परिणाम देता है ।
5 पूर्व दिशा क्षेत्र (East direction)
पूर्व दिशा क्षेत्र में इस दिशा क्षेत्र में बनाया गया बोरवेल अच्छे परिणाम देता है।
6 पूर्व – पूर्व – दक्षिण दिशा क्षेत्र (East east south direction )
यह दिशा क्षेत्र वायु तत्व से अग्नि तत्व के रूपांतरण का क्षेत्र होता है इस दिशा में जल तत्व की उत्पत्ति क्रिया से इस क्षेत्र में नाकारात्मक भाव पैदा करता है।
इस दिशा क्षेत्र में बोरवेल अथवा पानी का कुंड निषेध बताया गया है इस दिशा में बनाया गया बोरवेल या पानी का कुंड घर में मंथन की क्रिया को स्थगित कर देता है घर में रहने वाले सदस्यों के स्वभाव में निरसता आती है। व्यक्ति अपनों जीवन यापन की क्रिया पर अपनी प्रतिक्रिया देना बंद कर देता है।
किसी भी विषय को आगे बढ़ाने के विचारों में निरसता रहती है।
7 पूर्व – दक्षिण दिशा क्षेत्र ( East – South )
यह दिशा क्षेत्र अग्नि तत्व से संबंधित क्षेत्र होता है इस क्षेत्र में जल तत्व से संबंधित की गई क्रिया इस दिशा क्षेत्र में विरोध उत्पन्न करती है तथा इस क्षेत्र से अग्नि तत्व के गुणों में कमी लाता है।
8 पूर्व – दक्षिण – दक्षिण दिशा क्षेत्र (East South south direction )
यह दिशा क्षेत्र अग्नि तत्व से संबंधित दूसरा क्षेत्र है इस दिशा में जल तत्व से संबंधित की भी क्रिया यहां के प्रभाव में नकारात्मक ऊर्जा में वृद्धि करता है इस दिशा क्षेत्र में बनाया गया भुमिगत पानी का टैंक तथा बोरवेल घर में रहने वाले सदस्यों में आत्मविश्वास की कमी करता है।
9 दक्षिण दिशा क्षेत्र (South )
यह दिशा क्षेत्र अग्नि तत्व से संबंधित दिशा क्षेत्र होता है इस दिशा क्षेत्र में जल तत्व से संबंधित की गई क्रिया इसकी साथ क्षेत्र की सकारात्मक ऊर्जा को नष्ट कर देती है इस दिशा में बनाया गया भूमिगत पानी का टैंक तथा बोरवेल घर में रहने वाले सदस्यों के द्वारा किया गया कार्यों में सार्थक परिणाम नहीं दे पाता इस दिशा क्षेत्र में पानी की उपस्थिति घर के सदस्यों में साहस की जगह दुसाहस में वृद्धि करता है। यहां जल की उपस्थिति विपरीत परिणाम देती है।
10 दक्षिण – दक्षिण – पश्चिम दिशा क्षेत्र ( South – south – West Direction )
यह दिशा क्षेत्र अग्नि तत्व से पृथ्वी तत्व के रूपांतरण का क्षेत्र होता है। इस दिशा क्षेत्र में जल तत्व से संबंधित किसी भी क्रिया को करने से घर में अनावश्यक खर्चों में वृद्धि करता है यहां पर बनाई गई पानी की टंकी तथा बोरवेल पेट के रोगों में वृद्धि करता है।
11 दक्षिण – पश्चिम दिशा क्षेत्र ( South – West )
यह दिशा क्षेत्र पृथ्वी तत्व से संबंधित दिशा क्षेत्र होता है इस तत्व क्षेत्र में जल तत्व से संबंधित कि गई कोई भी क्रिया घर के आवरण में बुरे प्रभावों को बढ़ाता है।
यह दिशा क्षेत्र जल तत्व का विरोधी क्षेत्र होता है इस क्षेत्र में पानी की उपस्थिति जल तत्व के गुना में कमी लाती है तथा पृथ्वी तत्व की गुणों में विरोधाभास पैदा करता है। यहां जल तत्व की उपस्थिति दलदल की स्थिति का निर्माण करती है।
12 दक्षिण – पश्चिम – पश्चिम दिशा क्षेत्र (south West west Direction )
यह दिशा क्षेत्र पृथ्वी तत्व से संबंधित दिशा क्षेत्र है इस क्षेत्र में जल की उपस्थिति इस क्षेत्र के गुणों को समाप्त करती है। इस दिशा क्षेत्र में बनाया गया भूमिगत पानी का टैंक तथा बोरवेल जीवन में की गई पूंजी की बचत तथा जीवन में अच्छे अनुभव में कमी करता है।
13 पश्चिम दिशा क्षेत्र (West Direction)
यह दिशा क्षेत्र आकाश तत्व से संबंधित तत्वों का क्षेत्र होता है आकाश तत्व जल तत्व का सहायक तत्व होता है इसलिए इस क्षेत्र में बनाया गया भुमिगत पानी का टैंक तथा बोरवेल में अच्छे परिणाम देता है।
14 पश्चिम – पश्चिम -उत्तर दिशा क्षेत्र (West – west – north Direction )
यह दिशा क्षेत्र आकाश तत्व से संबंधित दिशा क्षेत्र होता है लेकिन इस क्षेत्र को घुटन प्रभावित क्षेत्र माना गया है इसलिए इस दिशा क्षेत्र में जल तत्व कि उत्पत्ति इस दिशा को प्रभावित करती है ।
इस क्षेत्र को विसर्जित से संबंधित क्रियो के लिए चिन्हित किया गया है यहां से जल प्राप्ति एवं जल संग्रह से संबंधित क्रियाएं दुष्परिणाम देती है।
यहां बोरवेल तथा भूमिगत पानी की टंकी नहीं बननी चाहिए यहां पर जलतत्व की उपस्थिति इस दिशा के तत्वों में कमी करता है।
15 पश्चिम – उत्तर दिशा क्षेत्र (West – North – direction )
यह दिशा क्षेत्र आकाश तत्व और जल तत्व की मिश्रित दशा मानी गई है इस दिशा को सहयोग के लिए जाना जाता है इस दिशा क्षेत्र में बनाया गया भूमिगत टैंक तथा बोरवेल अच्छे परिणाम देते हैं।
16 पश्चिम – उतर – उत्तर दिशा क्षेत्र ( West – North – north direction )
यह दिशा क्षेत्र जल तत्व से संबंधित दिशा क्षेत्र है इस क्षेत्र में जल तत्व की उत्पत्ति मानी गई है यहां पर बनाई गई पानी की टंकी तथा बोरवेल अच्छे परिणाम देती है।