द्वारा पद पर सुबह शाम जल अर्पित करने का क्या महत्व है घर का मुख्य द्वार एक मुख्य क्षेत्र होता है इस क्षेत्र में जो द्वार पद के देवता होते हैं उनके पूजन का विशेष महत्व होता है । प्रथम पूजा इनको साक्षी मानकर होती है उसके बाद में घर कि सभी पूजाएं शुरू होती है । इसलिए मुख्य द्वार के देव ऊर्जा के सम्मान में जल अर्पित किया जाता है । संध्या ओर प्रातः काल जब सूर्य देव उदय और अस्त अवस्था में होते हैं तब यह क्रिया द्वारा पर कि जाती है।
सनातन संस्कृति में सबका सम्मान किया गया है।और इस कारण हमारी दिनचर्या में ये क्रियाएं नित्य की जाती है।
इस दुनिया में मनुष्य जब अपने कर्तव्य के अधीन प्रकृति के सहयोग में रहकर व्यक्ति जब सन्तान पैदा करता है। तो उस घर कि ऊर्जाएं भी सिद्ध होती है। सनातन संस्कृति में मनुष्य कि सहायक सभी ऊर्जाओं को देवताओं के रूप में पुजा जाता है। जैसे किसी भी कारखाने में मशीनों
इन ऊर्जाओं को सनातन संस्कृति में जीवन यापन करने वाले शुरुआत से ही पहचानते हैं इसलिए इनकी पूजा करते हैं सुबह और शाम द्वारपाल की पूजा करने का विधान है उसी के अनुसार यह प्रथा घटते घटते है पानी के लोटे पर आ गई है । प्राचीन काल में द्वार पाल के रूप में कुत्ते की गाय की रोटी घर के बाहर रखी जाती थी और पानी का बर्तन भरकर रखा जाता था ।
घर में मुख्य अनुष्ठान के समय सभी देवताओं कि आहुतियां दी जाती है। जब घर पर हवन किया जाता है तो देवताओं का आह्वान करके आहुतियां दी जाती है।इन आहुतियों में प्रथम आहुति द्वार पाल कि होती है।
यह सनातन संस्कृति कि एक प्रक्रिया है जिसमें घर के सदस्य परमात्मा को धन्यवाद करते हैं।